गीता हूँ कुरान हूँ मैं,
मुझ को पढ़ इंसान हूँ मैं॥
मुझ को थकने नही देता ये ज़रूरत का पहाड़,
मेरे बच्चे, मुझे बूढा नही होने देते॥
मेरी आँखें लगी हैं आसमानों पर
सूना हैं आसमानों पर खुदा हैं।
मुझ को यकीन हैं, सच कहती थी, जो भी अम्मी कहती थी,
जब मेरे बचपन के दिन थे, चाँद पे परियां रहती थी॥ (जावेद अख्तर)
And my fave piece:
मुलायम गर्म समझौते की चादर,
ये चादर मैंने बरसों में बुनी हैं
कहीं भी सच के गुल बूटां नही हैं,
कहीं भी झूठ का टांका नही हैं॥
इसी से मैं भी तन ढाक लूंगी अपना
इसी से तुम भी मुतमईन रहोगे
ना खुश रहोगे, ना उदास रहोगे॥
इसी को तान कर बन जाएगा घर
बिछा लेंगे तो खिल उठेगा आँगन॥