मैंने नवरस की दुकान लगायी
सबसे ज्यादा, बिका ग़म
शांति की ओर
किसी ने नज़र भी न उठाई
श्रृंगार
खुद ही बिक गया
वीभत्स और भयानक को
चांदी का वर्क लगाया
तो कुछ लोग ले गए
हास्य
हँसते खेलते निकल गया
वीर रस
तेज़ गर्जना के साथ,
पर कम लोगों में ....
जिसने लिया,
पूरे मन के लिए लिया...
ये रस
आधा सेर नहीं मिलता...
पूरा सर ही खपाना पड़ता है..
अदभुतं
मेरे पास ही रखा है
इस के बिना
सांस नहीं आती..
oxygen सा है..
सबसे ज्यादा, बिका ग़म
शांति की ओर
किसी ने नज़र भी न उठाई
श्रृंगार
खुद ही बिक गया
वीभत्स और भयानक को
चांदी का वर्क लगाया
तो कुछ लोग ले गए
हास्य
हँसते खेलते निकल गया
वीर रस
तेज़ गर्जना के साथ,
पर कम लोगों में ....
जिसने लिया,
पूरे मन के लिए लिया...
ये रस
आधा सेर नहीं मिलता...
पूरा सर ही खपाना पड़ता है..
अदभुतं
मेरे पास ही रखा है
इस के बिना
सांस नहीं आती..
oxygen सा है..